Tuesday 30 October 2018

दिल्ली की लत

बाहर निकल आया
दिल्ली से,
पगडंडियों के रास्ते
दिल अभी भी बैठा है
तेरे वास्ते,
यह खेल है दिल्ली का
किसी को समझ नहीं आता।
लगता है
तू है मेरे वास्ते
मैं हूँ तेरे वास्ते..
ये फासले..
कुछ दिन वास्ते..

यहां का मौसम सुहाना
दिल्ली से बेहतर
है हवा यहां की..
फर्क है मन नहीं लगता
इन प्रदूषणमुक्त हवाओं में..
दिल्ली की हवा
प्रदूषित है
है अपने वास्ते।


https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/kashish-verma-delhi
(अमर उजाला काव्य टीम द्वारा "मेरे अल्फ़ाज" ग्रंथ में भी प्रकाशित)

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