उसने मुझे कंधे पे खिलाया
हर दुख छिपा कर
मुझे भरपूर सुख दिलाया।
अपना पेट न भर कर,
मुझे हरपल खूब खिलाया।
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..
पिता का कंधा..
वो स्वर्ग है,
जिसमें जिंदगी का हर दुख
सुख में बदल जाता हैं।
पिता का बाहर रहना
मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी,
कमजोरी है।
उसका चेहरा देखे बिना
दिन का अस्तित्व नहीं रहता।
हरपल मुझे उसका कन्धा ही याद आता,
क्योंकि
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..
जिंदगी की व्यस्त दौड़ में भी
अगर मांगना हो तो,
पिता सदैव रहें साथ।
उसके साथ जो वक्त बिताया
उसने मुझे चैन सिखाया
साथ ही
उसने मुझे कंधे पर खिलाया।
(अमर उजाला के "मेरे अल्फ़ाज़" काव्य ग्रंथ में प्रकाशित कविता का लिंक https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/kashish-verma-pita-ka-samman)
हर दुख छिपा कर
मुझे भरपूर सुख दिलाया।
अपना पेट न भर कर,
मुझे हरपल खूब खिलाया।
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..
पिता का कंधा..
वो स्वर्ग है,
जिसमें जिंदगी का हर दुख
सुख में बदल जाता हैं।
पिता का बाहर रहना
मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी,
कमजोरी है।
उसका चेहरा देखे बिना
दिन का अस्तित्व नहीं रहता।
हरपल मुझे उसका कन्धा ही याद आता,
क्योंकि
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..
जिंदगी की व्यस्त दौड़ में भी
अगर मांगना हो तो,
पिता सदैव रहें साथ।
उसके साथ जो वक्त बिताया
उसने मुझे चैन सिखाया
साथ ही
उसने मुझे कंधे पर खिलाया।
(अमर उजाला के "मेरे अल्फ़ाज़" काव्य ग्रंथ में प्रकाशित कविता का लिंक https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/kashish-verma-pita-ka-samman)
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