Wednesday, 31 October 2018

पिता का सम्मान

उसने मुझे कंधे पे खिलाया
हर दुख छिपा कर
मुझे भरपूर सुख दिलाया।
अपना पेट न भर कर,
मुझे हरपल खूब खिलाया।
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..

पिता का कंधा..
वो स्वर्ग है,
जिसमें जिंदगी का हर दुख
सुख में बदल जाता हैं।
पिता का बाहर रहना
मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी,
कमजोरी है।
उसका चेहरा देखे बिना
दिन का अस्तित्व नहीं रहता।
हरपल मुझे उसका कन्धा ही याद आता,
क्योंकि
उसने मुझे कंधे पर खिलाया..

जिंदगी की व्यस्त दौड़ में भी
अगर मांगना हो तो,
पिता सदैव रहें साथ।
उसके साथ जो वक्त बिताया
उसने मुझे चैन सिखाया
साथ ही
उसने मुझे कंधे पर खिलाया।

(अमर उजाला के "मेरे अल्फ़ाज़" काव्य ग्रंथ में प्रकाशित कविता का लिंक https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/kashish-verma-pita-ka-samman)

Tuesday, 30 October 2018

दिल्ली की लत

बाहर निकल आया
दिल्ली से,
पगडंडियों के रास्ते
दिल अभी भी बैठा है
तेरे वास्ते,
यह खेल है दिल्ली का
किसी को समझ नहीं आता।
लगता है
तू है मेरे वास्ते
मैं हूँ तेरे वास्ते..
ये फासले..
कुछ दिन वास्ते..

यहां का मौसम सुहाना
दिल्ली से बेहतर
है हवा यहां की..
फर्क है मन नहीं लगता
इन प्रदूषणमुक्त हवाओं में..
दिल्ली की हवा
प्रदूषित है
है अपने वास्ते।


https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/kashish-verma-delhi
(अमर उजाला काव्य टीम द्वारा "मेरे अल्फ़ाज" ग्रंथ में भी प्रकाशित)

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