Wednesday 5 September 2018

स्वाभिमान

'स्वाभिमान' शब्द दो शब्द के मिश्रित रूप से बना है 'स्व' तथा 'अभिमान'। इसका वास्तविक अर्थ है 'स्व' अर्थात् 'स्वयं' तथा 'अभिमान' का अर्थ है 'अहंकार' या 'प्रतिष्ठा'। इससे स्पष्ट है कि स्वाभिमान का अर्थ है स्वयं का अहंकार अथवा स्वयं की प्रतिष्ठा करना तथा दूसरे शब्दों में स्वाभिमानी का अर्थ, स्वयं पर गर्व करना होता है। दरअसल, अहंकार का अर्थ है 'मैं ही हूँ' जबकि स्वाभिमान का अर्थ है 'मैं भी हूँ'। स्वयं की भाषा, राष्ट्र, धर्म, कार्य आदि पर गर्व करना स्वाभिमान है। स्वाभिमान के सन्दर्भ में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि "मानो हि महतां धनम्" अर्थात् महापुरुषों का धन ही मान है। यही मान स्वाभिमान के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता हैं। स्वयं को अन्य सामाजिकों से भिन्न स्वीकार करना स्वाभिमान होता है। जो व्यक्ति स्वाभिमानी होता है उसके व्यक्तित्व में आत्म सम्मान की भावनाएं अत्यधिक होती है। स्वाभिमानी होना स्वयं पर गर्व करना होता है। प्रत्येक व्यक्ति में स्वाभिमान होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि बिना स्वाभिमान के सभी व्यक्ति अधूरे माने  जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत स्वाभिमान होने के कारण अनेकों बार व्यक्तियों को अपने चरित्र अथवा व्यक्तित्व पर हानि पहुंचती है। इसका मुख्य कारण है स्वाभिमान होना। स्वाभिमान के कारण व्यक्ति स्वयं के विचारों पर अड़ा रहता है जो उसके चरित्र को हानि पहुंचता है। व्यक्ति स्वाभिमानी होने के कारण अन्य लोगों को कम आंकने तथा स्वयं से कम ज्ञानी मानने लगता है। साथ ही, स्वयं को बड़ा समझने लगता है। स्वाभिमानी होने पर व्यक्ति गर्व तो करता है, परंतु कई दफा अन्य व्यक्ति स्वाभिमानी व्यक्ति के विचारों तथा उसके व्यवहार से आहत हो जाते हैं। इसी कारण स्वाभिमानी सदैव आश्वस्त होते है।

भारतीय सन्दर्भ में महापुरुषों या महानुभवों के व्यक्तित्व की बात की जाएं तो इनके व्यक्तित्व में एक विशेषता सदैव पर्याप्त मिलता है, वह है स्वाभिमान। तमाम महानुभवों को स्वाभिमानी होने पर गर्व महसूस हुआ करता है। इसी कारण भारतीय महापुरुष इस स्वाभिमान का त्याग कभी उचित नहीं समझते है। स्वामी विवेकानंद  ने कहा है कि प्रत्येक महान स्त्री-पुरुषों के जीवन में जो सर्वाधिक प्रेरणा-शक्ति रही है, वो है उनका आत्मविश्वास यानि स्वाभिमान।

साहित्य शिरोमणि डॉ. धर्मपाल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि 'स्वाभिमान का भाव मनुष्यों में ही होता है', 'जिसमें स्वाभिमान नहीं, वह पशुवत  है', 'व्यक्ति कितना भी अकिंचन क्यों न हो, यदि उसमें स्वाभिमान है, तो वह किसी राजा से कम नहीं' इससे यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि संसार में बिना स्वाभिमान के सभी व्यक्ति अधूरे माने जाते हैं।


सन्दर्भ-
1. मैनी,डॉ. धर्मपाल.(2005). मानव-मूल्य-परक शब्दावली का विश्वकोश, सरुप एंड सन्ज: नई दिल्ली।
2. स्वाभिमान का महत्व : ॐ स्वामी।
3. कांत, सुरेश.(2007). उत्कृष्ट प्रबंधन के रूप , राधाकृष्ण प्रकाशन : नयी दिल्ली।

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