Saturday 16 February 2019

क्यों आवश्यक है बौद्धिक संपदा, आइये जानते है..

बौद्धिक संपदा को अंग्रेजी में Intellectual Property के नाम से जाना जाता है। Intellectual Property को ही हिंदी भाषा में बौद्धिक संपदा कहते है। बौद्धिक संपदा का शाब्दिक अर्थ है कि बौद्धिक अर्थात् 'बुद्धि के योग्य' और सम्पदा अर्थात् 'सम्पत्ति' यानि मानव मस्तिष्क से किया गया कार्य या जिस अन्तर्वस्तु पर व्यक्ति या संस्था द्वारा कब्जा किया हो, उसे बौद्धिक संपदा कहते है। बौद्धिक संपदा से अभिप्राय है कि नैतिक और वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान बौद्धिक सृजन। 
  • जेरेमी फिलिप्‍स के अनुसार - "बौद्धिक सम्‍पदा से अभिप्राय ऐसी वस्‍तुओं से है जो व्‍यक्‍ति द्वारा बुद्धि के प्रयोग से उत्‍पन्‍न होती है। (इन्‍ट्रोडक्‍शन टू इन्‍टेलेक्‍च्‍ुअल प्रापर्टी लॉ पुस्तक संस्‍करण 1986)।
'बौद्धिक संपदा' का तात्पर्य किसी व्यक्ति अथवा संस्था की अन्तर्वस्तु, मानव-मस्तिष्क के उत्पाद से है। ये उत्पाद किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा कृति, संगीत, कला, खोज अथवा प्ररचना आदि किसी भी प्रकार का हो सकता है जो उस व्यक्ति अथवा संस्था की बौद्धिक संपदा या बौद्धिक सम्पत्ति है। बौद्धिक संपदा मानव-मस्तिष्क की रचनाओं का एक सन्दर्भ है। बौद्धिक संपदा के तहत किसी रचना का आविष्कार, साहित्यिक कार्य, कलात्मक कार्य , प्ररचना, वाणिज्य में इस्तेमाल प्रतीक आदि आते है। दरअसल, बौद्धिक सम्‍पदा बौद्धिक श्रम से उत्‍पन्‍न होने वाला उत्‍पाद है। बौद्धिक संपदा के प्रमुख विषय लेखकों की रचनाएं, निर्माणकर्ताओं के निर्माण और अविष्कारकर्ताओं के आविष्कार माने जाते है।

बौद्धिक संपदा की दो प्रमुख श्रेणियां इस प्रकार है -    

   1. प्रकाशनाधिकार एवं प्रतिवेशी अधिकार -  इसके तहत साहित्यिक, कलात्मक, संगीतात्मक, छायाचित्रात्मक एवं दृश्य-श्रवणात्मक कार्य शामिल हैं।
    2.  औद्योगिक संपदा - मानवीय उद्यम के सभी क्षेत्रों में किये गये आविष्कार, वैज्ञानिक खोजें, औद्योगिक डिजाइन, ट्रेडमार्क, सर्विस मार्क तथा वाणिज्यिक नाम व पदनाम शामिल हैं।

बौद्धिक संपदा के प्रमुख अधिकार


अधिकार का अर्थ होता है, हक या प्रभुत्व। बौद्धिक सर्जनात्मक परिप्रेक्ष्य में व्यक्तियों को दिए गए प्रभुत्व या अधिकार को, बौद्धिक संपदा अधिकार कहते है। बौद्धिक संपदा अधिकार देने का मुख्य उद्देश्य है मानवीय बौद्धिक सर्जनशीलता को प्रोत्साहित करना है बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान किये जाने का महत्व केवल इतना नहीं है कि बौद्धिक रचनाओं पर सदैव  मात्र लेखक का ही अधिकार होगा। बल्कि, "बौद्धिक संपदा अधिकार एक निश्चित समयावधि तथा निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के मद्देनजर प्रदान किये जाते है।

बौद्धिक संपदा का क्षेत्र अत्यंत व्यापक होने के कारण अधिकारों एवं नियमों की व्यवस्था की गई है।

भारत सरकार द्वारा 12 मई, 2016 को ‘राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति’ को स्वीकृति प्रदान की गई।2 इसका उद्देश्य है कि भारतीयों को रचनात्मकता में विशेष प्रोत्साहन देना। साथ ही उज्ज्वल भविष्य के लिए इस नीति का प्रयोग सम्भव होगा। इस नीति की मुख्य बातें है- भरतीय विकास के लिए ज्ञान होना आवश्यक है, पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य सुविधा को बढ़ावा देना। बौद्धिक अधिकार नीति 'रचनात्मक भारत, अभिनव भारत' के लिए कार्य करती है।

बौद्धिक संपदा के तहत भारत मे सर्वप्रथम वर्ष 1911 में  'भारतीय संशोधन और डिज़ाइन अधिनियम' बना, वर्ष 1970 में 'एक्सव अधिनियम' को पारित किया गया। 'संशोधन अधिनियम' के नाम से वर्ष 1999, 2002, 2005 को कानून पारित किए गए। बौद्धिक सृजनात्मक के आधार पर बौद्धिक संपदा अधिकारों को निम्न वर्गों में बांटा गया है:- संशोधन, व्यापार चिन्ह, कॉपीराइट, भौगोलिक उपदर्शन।


सन्दर्भ-ग्रंथ:-

1. बौद्धिक सम्‍पदा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, बौद्धिक संपदा ब्लॉग, अमर मीना।
2. भारत के बौद्धिक संपदा अधिकार: चुनौतियाँ एवं समाधान, दृष्टि।
3. भारत के बौद्धिक संपदा अधिकार: चुनौतियाँ एवं समाधान, दृष्टि IAS.
4. बौद्धिक संपदा अधिकार नीति : ‘रचनात्मक भारत; अभिनव भारत’।
5.  उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार।
6. बौद्धिक संपदा अधिकार नीति : ‘रचनात्मक भारत; अभिनव भारत’, दृष्टि।
7. व्हाट इस इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी।

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छी एक पहल

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    1. आपका आशीर्वाद बना रहे।💐💐

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